पर्यावरण का मत करो शोषण ,यह हम सब की करती हैं पोषण
भगवान श्री चित्रगुप्त लेखन कला मंच द्वारा जून 2022 मे आमंत्रित लेख शीर्षक पर्यावरण विशेष मे प्रेषित लेख इस प्रकार हैं । यदि कोई भी लेख कही से copy किया गया होगा तो उसके लिए लेखक स्वयं जवाबदार हैं ।
लेखन कला मंच जून 2022 मे प्राप्त लेख
- चित्रांशी एकता श्रीवास्तव, इंदौर (म.प्र)
- चित्रांशी नीलू सक्सेना कस्तूरी देवास (म.प्र.)
- चित्रांश डॉ रजनीश श्रीवास्तव इंदौर (म.प्र.)
- श्रीमती प्रियंका भूतड़ा बरगढ़ (उड़ीसा)
- डॉ शशिकला अवस्थी इंदौर (म.प्र.)
- चित्रांशी कीर्ति निगम इन्दौर (म.प्र.)
- अनेरी पोद्दार (कक्षा – 6, उम्र -11 वर्ष), इंदौर (म.प्र.)
- चित्रांश आर्यन श्रीवास्तव (कक्षा – 6) जांजगिर (छत्तीसगढ़)
- चित्रांश उदय भास्कर अम्बस्थ जबलुपर (म.प्र.)
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- चित्रांश नरेंद्र श्रीवास्तव नीमच राष्ट्रीय संयोजक 9425975525
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- चित्रांश डॉक्टर गोविंद नारायण श्रीवास्तव रीवा मध्यप्रदेश संयोजक 9407061724
चित्रांशी एकता श्रीवास्तव, इंदौर (म.प्र)
क्या कोई एक दिन होता है जब हम मिलकर बड़े उत्साह से मनाते है।
घर-2 जाकर पौधा उपहार में देकर आते है।
पेड़ लगाओ, पेड़ लगाओ का नारा लगाते है।
लेकिन रास्ते के बीच में आ रहा पेड़ सबसे पहले कटवाते है।
जहाँ कभी मनोरम वन हुआ करते थे
खेत और खलिहान फूला करते थे
अब वहां सोसायटियों का कब्ज़ा है
बची खुची कसर ये लकड़ी व्यवसाय पूरी कर लेता है।
सोचो यदि तुम पेड़ काटते जाओगे
और बदले में दूजा पेड़ न लगाओगे
तो इस पर्यावरण को कैसे बचाओगे
अपनी भावी पीढ़ी को बदले में कार्बन ऑक्साइड देकर जाओगे।
अपने घर का बगीचा हम हरा- भरा चाहते है तो घर के बाहर क्यों सौतेला रुख अपनाते है।
विडंबना नही तो और क्या कहूँ इसे न जाने कब हम अपनी आंख खोल पाते है।
पृथ्वी के बढ़ते तापमान की भी फिक्र नही है हमें क्योंकि एयरकंडीशनर कारों और घरों में सोकर हम इस कटु सत्य से मुँह छुपाते है।
दुःख होता है बहुत जब देखती हूं निःसहाय और निर्धन लोगो को तपती दुपहरी में झुलसते हुए ।
मासूम बेजुवान पंछियों को यहाँ -वहां भटकते हुए।
आवारा पशु कुछ पल पेड़ की छांव तलाशते है।
नही मिलने पर गर्मी की वजह से दम तोड़ जाते है।
कुछ नही कर सकने का मलाल लिए नही जीना चाहते हो यदि तो एक पेड़ समाज को दो
और अपने बच्चों को भी सीख देते जाओ।
जानती हूं अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता किन्तु अनेकता में एकता है यही सोचकर मन को समझाती हूँ।
थोड़ा ही सही कुछ तो बदलते है हम पर्यावरण दिवस मना कर ही सही पौधरोपण तो करते है हम ।
इस देश के भविष्य को आगे आने वाली पीढ़ी को ग्लोबल वार्मिंग से बचना है तो इस धरा को फिर से हरा -भरा बनाना है।
इस धरा का कर्ज आखिर कैसे चुका पाएंगे एक दिन ख़ाक होकर इस मिट्टी में ही तो मिल जाएंगे
लेकिन क्या तब तक ज़मीन बचेगी ??
या हर जगह केवल इमारतें ही पाएंगे!!!!
यदि विश्व पर्यावरण दिवस के एक दिन भी हम 135 करोड़ भारतवासी पौधरोपण करने लग जाये तो इस धरती को ग्लोबल वार्मिंग से तो बचा ही सकते है।
चित्रांशी नीलू सक्सेना कस्तूरी देवास (म.प्र.)
एक नन्हा पौधा आज और जब भी मौका मिले, अवश्य ही लगाएं।
अच्छे से देखभाल करें ,पानी और खाद समय समय पर दे।
कुछ ही वर्षों में आपके सरंक्षण में पौधा वृक्ष बन जायेगा ।
उसकी छाया में आपके परिवार के साथ -साथ हर पथिक भी आनंद लेगा।
तब तक आप दुसरो के लगाएं वृक्षों के नीचे बैठकर छाया का आनंद लिजिये ।
जब सभी मानव इस प्रकार कार्य करते चलेंगे ,तो एक दिन फिर से वंसुधरा हरियाली की चादर ओढ़े इठलाती नजर आएंगी ।
तो हम सब मिल कर संकल्प लें कि इस कार्य को अंजाम अवश्य ही देंगे।
दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा गरमी का प्रकोप, पर्यावरण विनाश का है यह सब संताप।
दुर्लभ होता जा रहा, अब चिड़ियो का चहचहाना, पौधे लगाने हमको होंगे, अब भविष्य के लिए कुछ बचाना।
पर्यावरण की रक्षा का हम सबका कर्तव्य, पहनानी है वसुंधरा को हरियाली की चुनर धानी भव्य।
आपका दिन पर्यावरण संरक्षण की सुरक्षा में बीते।
चित्रांश डॉ रजनीश श्रीवास्तव इंदौर (म.प्र.)
अपर कलेक्टर एवं उपायुक्त (इंदौर सम्भाग)
एक कहानी जो बचपन में सुनी थी।
एक राजा ने एक तालाब खुदवाया और प्रजा को यह निर्देश दिया कि शहर में सूरज का उजाला होने के पहले सभी शहरवासी अपने घर से एक लोटा जल लेकर आएंगे और तालाब में डाल देंगे।
दूसरे दिन सुबह परिणाम यह रहा कि तालाब खाली था। क्योंकि हर व्यक्ति ने यह सोचा कि अगर हम पानी नहीं डालेंगे तो बाकी लोग तो डाल ही रहे हैं। हमारे एक लोटा पानी न डालने से क्या होगा।और किसी ने भी पानी नहीं डाला।
अगले दिन राजा ने जब तालाब खाली देखा तो भारी नाराजगी व्यक्त करते हुए यह कहा कि कल हर व्यक्ति अपने घर से एक लोटा दूध लाकर तालाब में डालेगा। इस बार सभी ने यह सोचा कि अगर हम दूध की जगह पानी डाल दें तो किसी को क्या पता चलेगा,सब लोग तो दूध ही डाल देंगे और अगले दिन सुबह तालाब में दूध की जगह पानी ही पानी था।
पर्यावरण सुधार के विषय में शायद हम सभी ऐसा ही सोच रहे हैं कि अगर हम पर्यावरण सुधार पर ध्यान नहीं देंगे तो दूसरे तो पर्यावरण सुधार पर ध्यान दे ही देंगे।
रचयिता- प्रियंका भूतड़ा बरगढ़ (उड़ीसा)
प्रकृति को प्रदान करें कवच
प्रकृति का खिलखिला , महकाता, मदमात स्वरूप
फिर क्यू करें खिलवाड़ मनुष्य
हरी भरी ये धरती, नीला नीला ये अंबर
फूल पर तितली बैठे, भंवरा करें मधु पान
फिर क्यु काट रहे पेड़ों को
फिर क्यु कर रहे जंगल नग्न
क्यू दे रहे बढ़ता प्रदूषण को बुलावा
झर झर बहता झरना
सर सर आती बच्चों की आज
कोयल अपनी मधुर स्वर सुनाती
चिड़िया का चहकाना, मन को लुभाती
फिर क्यू है प्रकृति से अनजान
पेड़ों को काटते ,पक्षी को मारते
पानी को व्यर्थ बहाते
हो गया है मनुष्य स्वार्थी
कभी किसी का नहीं बनता सारथी
अब तो सोचो जरा!
धरा का क्यू हो अपमान भला
नहीं होगा जब पीने को नीर
हे मनुष्य! मिलेगी तुझे पीर
ना सुनने को होगी कोयल की वाणी
कैसे पता लगाओगे बारिश है आनी
सोच कर आंखे भर जाती
जीवन होगा कैसा प्रियंका
ना होंगे हम ,ना होंगे तुम
होगी बस बंजर धरती
सुना होगा उपवन
हे मनुष्य! संभल जा तू अब जरा
क्यू दे रहा है ,प्रदूषण को बुलावा भला
वायु प्रदूषण से हो रहा बीमारी का आह्वान
अब सांस नहीं ले पा रहा सारा जहान
प्रकृति दे रही आवाज
पर्यावरण को है अब बचाना
अब भी है हमारे पास समय
डस्टबिन मे हो सब कचरा
सड़क को कोई ना करें गंदा
चारों तरफ पेड़ लगाने का नारा
पर्यावरण प्रदूषण अब नहीं करेंगे दोबारा
हम भी प्रण लें, तुम भी प्रण लो
धरा को रखेंगे स्वच्छ
प्रकृति को प्रदान करेंगे कवच
यही होगी प्रियंका की आवाज
डॉ शशिकला अवस्थी इंदौर (म.प्र.)
वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण बहुत जरूरी हो गया है । शहरीकरण के कारण वन के पेड़ काटे गए हैं और सीमेंट की ईमारते खड़ी हो गई हैं। पेड़ों के अभाव में वर्षा पर असर पड़ा है। वर्षा कम हो रही है । तापमान बढ़ गया है। सूर्य का ओजोन छिद्र बढ़ गया है । दक्षिणी और उत्तरी ध्रुव ग्लेशियर पिघल रहे हैं ,समुद्र का जल स्तर बढ़ गया है। ऐसे हालात में पेड़ों को लगाना और बचाना बहुत जरूरी है। अन्यथा पर्यावरण का संतुलन खत्म हो जाएगा। पर्यावरण संरक्षण के लिए जल,वायु ,ध्वनि और मिट्टी को भी प्रदूषण से बचाना है।
कीटनाशक पदार्थों का उपयोग कम करना है। जैविक खाद का उपयोग करना है ।फैक्ट्रियों का प्रदूषित जल नदियों में नहीं बहाना है। सभी नागरिकों में जागरूकता लानी है ।तब ही हम पर्यावरण का संरक्षण कर, पर्यावरण को बचा सकते हैं और दुनिया को सुख ,समृद्धि, स्वास्थ्य दे सकते हैं ।अतः वृक्षारोपण बहुत जरूरी है। जिससे हमें प्राणवायु ऑक्सीजन मिलती है और कार्बन डाइऑक्साइड का शोषण होकर वातावरण शुद्ध होता है।
पेड़ हमें खाद्यान्न, फल, फूल ,औषधि ,इमारती लकड़ी, छाया ,वर्षा सभी कुछ प्रदान करते हैं ।जंतु, वनस्पति के समन्वय से ही वातावरण संतुलित रहेगा और हम पर्यावरण को बचा पाएंगे ।
मैंने पर्यावरण संरक्षण पर एक कविता लिखी है प्रस्तुत है
शीर्षक – पर्यावरण संरक्षण
वृक्षारोपण करके, वसुंधरा का करो हरित श्रंगार ।
अन्न, फल ,फूल, औषधि, धरती देती है उपहार।
हरित धरा से मिलती प्राणवायु ऑक्सीजन, महिमा अपरंपार।
प्रकृति पर्यावरण को निर्मल बनाने की, सबसे है मनुहार।
धरती ही देती नदियों, झरनों, कुओं से जल ,जो है जीवन आधार।
धरती ने अपने गर्भ में संभाले खनिज संपदा के अनुपम भंडार ।
वन -जंगल लाते वर्षा, जल स्त्रोतों में करते जल विस्तार।
धरती की हरी-भरी चुनरिया में रंग-बिरंगे फूलों से मौसम होता गुलजार ।
हरे भरे पेड़ों के वाशिंदे पक्षियों से मिलती कूक, कलरव झंकार ।
वृक्षारोपण कर, संरक्षण करें पेड़ों का हम बारंबार।
तब ही जीव ,जंतु ,मानव को मिलेगी सुखद जीवन रसधार।
वायु ,जल, मिट्टी, ध्वनि प्रदूषण से पर्यावरण को बचाएं,ये प्रकृति के है उपहार।
धरती का तापमान 43से 47 डिग्री सेल्सियस ,कर रहा बंटाधार।
ओजोन परत छिद्र बढ़ गया, तपन की हुई भरमार।
बर्फ ग्लेशियर पिघल रहे, मानव ,प्राणी जीवन नैया है मझधार ।
वृक्षारोपण करें, वृक्ष देते शीतलसमीर ,वर्षा ,फल ,फूल औषधि उपहार ।
नहीं काटना पेड़ों को ,धरती, वन ,प्रकृति, पर्यावरण से करो प्यार ।
पर्यावरण संरक्षण का कर्तव्य निभाओ, तभी मिलेगा प्रकृति पर अधिकार।
पर्यावरण संरक्षण में सब मिलकर कदम बढ़ाओ, नहीं तो पर्यावरण कर देगा सृष्टि संहार।
चित्रांशी कीर्ति निगम इन्दौर (म.प्र.)
प्रकृति और मैं
प्रकृति से मेरा रिश्ता माँ बेटी जैसा।
पौधारोपण तरह-तरह के बीजों को मिट्टी में छुपाना,
अंकुरित उन्हें होते देखना शौक मेरा ऐसा।
रोपित कर देना मेरे नए नवेले गमलों में और पालना बच्चों जैसा उन्हें,
फिर इंतज़ार उन पर फूल और फल आने का।
बढ़ते उन्हें देख मन का झूम उठना उंगली पकड़ उनकी,उन्हें खड़ा करना।
कभी सोच भी डूबती और सोचती
क्यों नहीं ऐसा प्रेम उनको,जो छलते उनका हनन करते,
इतना दर्द होता उन्हें ये सोच रोती,
कितनी बड़ी दौलत से नवाज़ा ईश्वर ने हमें
कितने जतन से तराशा इतनी सुंदर प्रकृति।
इबादत की जगह छेड़ा उनको,
बजाय सहेजते उन्हें,तोड़ा उनको
सिर्फ़ थोड़े स्वार्थ के वश होकर।
न गहराई देखी उनकी,ना ऊँचाई,न पकड़ उनकी ज़मीन से,
बस उखाड़ फेंका थोड़ी सुविधावश।
रोती रही, रोकती रही प्रकृति,
आगाह किया बार-बार प्राकृतिक विपदाओं ने,
कुरबान हुए कई घर गाँव शहर पर,
वो बग़ैर रुके बढ़ते रहे लाशों पर से उनकी,
क्योंकि जकड़ रखा था विकास की इच्छाओं ने।
नहीं सुनी कराह पर्वतों की,ना रुदन नदियों का,
बस बने विनाशक उनके,रिश्ता था जिनसे सदियों का।
मैंने नदियों से पूछा एक दिन,
कहाँ गई कल कला हट तुम्हारी?
नदी बोली मैं तो कल-कल बहती सीधी चली जा रही थी अपनी मस्ती में,
तुम ही तो हो,जिसने ठेस पहुँचाई मेरे अस्तित्व को,
पर्वत से पूछा कहाँ गई तुम्हारी वो ऊँची-ऊँची श्रृंखलाएँ?
मैं तो खड़ा था सीना तान अपनी मगन में,
तुम ही तो हो,जिसने तोड़ा मुझे गया बिखर।
जंगलों से पूछा कहाँ गईंरौनकें,चहचहाहट,गुर्राहट और कूंक?
जंगल रो पड़ा अपनी बर्बादी की दास्ताँ सुनाते-सुनाते।
पेड़ों से पूछने की हिम्मत नहीं हुई मेरी
क्योंकि उन्हें तो उखाड़ जड़ों से फेंका था,
अपने विकास की संकुचित सोच से।
अनेरी पोद्दार (कक्षा – 6, उम्र -11 वर्ष), इंदौर (म.प्र.)
वर्तमान के विज्ञान युग में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या एक चुनौती बन कर खड़ी है। बड़े बड़े कारखानों , उद्योगों के कारण भी प्रदूषण अधिक बढ़ गया है। जल और वायु दोनों ही दूषित हो गए है , इतना ही नहीं अब तो ध्वनि – प्रदूषण के भी दुष्परिणाम सामने आने लगे है। पर्यावरण के संतुलन के लिए सभी को मिलजुलकर प्रयास करना होंगे।
इसके लिए पर्यावरण संरक्षण के लिए घर से शुरुआत करें हर प्राणी अपने जीवन यापन हेतु वनस्पति जगत पर आश्रित है. मनुष्य हवा में उपस्थित ऑक्सीजन को श्वास द्वारा ग्रहण करके जीवित रहता है. पेड़-पौधे ही प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन छोड़ते हैं. इस तरह मनुष्य के जीवन का आधार पेड़-पौधे ही उसे प्रदान करते हैं. इसके अतिरिक्त प्राणियों का आहार वनस्पति है. वनस्पति ही प्राणियों को पोषण प्रदान करती है. इसलिए पर्यावरण संरक्षण बहुत जरूरी है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने घर में ये छोटे-छोटे बदलाव करके पर्यावरण बचाने में बड़ा योगदान दिया जा सकता है। जैसे पर्यावरण को बचाने के लिए निम्न उपाय किये जा सकते है –
(१ ) किसी भी मांगलिक प्रसंग पर पौधे ही उपहार में दे एवं ले। अन्य किसी भी उपहार के लिए स्पष्ट रूप से इंकार कर दे।
( २ ) बाज़ार जाते समय कपड़े या जूट का थैला साथ ले जायें, सामान उसी में लायें।
( ३ ) पानी का बार—बार प्रयोग करें जैसे—सब्जी धोए हुए पानी को पौधों में डाल दें। कपड़े धोए हुए पानी से पोंछा लगा लें।
( ४ ) गोबर गैस प्लांट लगाकर बायो गैस से भोजन बनायें तथा ईंधन के रूप में जलने वाली लकड़ी व गोबर की बचत करें।
( ५ ) पॉलिथीन थैलियों का प्रयोग न करें। ये स्वास्थ्य एवं पर्यावरण दोनों के लिए घातक हैं।
( ६ ) घर में सौर उपकरणों का प्रयोग करने का प्रयास करे। इससे ऊर्जा संसाधनों की बचत तो होगी ही साथ ही इससे पकने वाला भोजन ज्यादा पौष्टिक होता है।
( ७ ) घर से थोड़ी दूरी पर ही कुछ कार्य हो तो गाड़ी से नहीं , साईकिल से या पैदल जाने की आदत डाले। यह सेहत के लिए भी अच्छा है , साथ ही ईंधन की भी बचत होगी।
( ८ ) घर के सभी सदस्यों की आदत डाले कि किसी भी कमरे से बाहर निकलते वक्त वहाँ का लाइट , पंखा अवश्य बंद करे।
( ९ ) घर में किसी भी आयोजन के लिए डिस्पोजेबल प्लेट्स की जगह घर के बर्तन का या फिर पत्तलों का इस्तेमाल करें।
( १० ) वटवृक्ष अमूल्य संपदा है। यह ऑक्सीजन देने के साथ हमें ग्लोबल वार्मिंग, सूखा एवं बाढ़ जैसे कई आपदाओं से बचाता है। इसलिए किसी भी शुभ अवसर या किसी की स्मृति में या पुण्यतिथि पर एक बरगद का पौधा लगाने के लिए जरूर प्रयास करना चाहिए ।
(११ ) कालोनियों में या समाज के किसी भी कार्यक्रम में सभी को यह संकल्प दिलाये कि जहां भी पेड़ की कटाई होगी वहां एकजुट होकर हम सब उसका विरोध करेंगे।
( १२ ) घर में अन्य सदस्यों से या बच्चो से सब्जियों , फलो आदि से निकलने वाले बीजो से सीड बाल बनवाये तथा जब भी बाहर घूमने जाए , सड़क के किनारे फैलाते जाए , जिससे बारिश में ये सभी वृक्ष के रूप में पनपेंगे।
इस तरह के कुछ छोटे छोटे उपाय करके घर से ही पर्यावरण संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है , तथा सभी को इस कार्य के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
चित्रांश आर्यन श्रीवास्तव (कक्षा – 6) जांजगिर (छत्तीसगढ़)
पर्यावरण मतलब हमारे आस पास का वातावरण। आज हमको बनाना है कि हम अपने आस पास के वातावरण को कैसे बचाए पर्यावरण को बचाने के लिए हमे पेड़ पौधे नहीं काटना चाहिए जब कि हमे और भी ज्यादा पेड़ पौधे उगाना चाहिए और हमे पानी बढ़ाता नहीं है । जब कि हम को तो पानी बचाना चाहिए इमे प्रदूषण नहीं करना चहिए ये सब काम करने से हम पर्यावरण को बचा सकते हैं
लेखक – उदय भास्कर अम्बस्थ जबलुपर (म.प्र.)
पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त कर पौधों को सुरक्षा देकर, नदी के जल को निर्मल व अविरल प्रवाह देकर पक्षिओं हेतु पेड़ पर भीड़, घोंसला, जलवायु परिवर्तन, फूलों के पराग से समाज को लाभान्वित कर पॉलिथिन से मुक्त कर प्राणदायी वायु सजोकर स्वच्छ वातावरण सृजन करें।
विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1972 से मनाया जा रहा है। वर्ष 2022 इस दिवस की स्वर्ग जयन्ती है। समुद्री प्रदूषण, जनसंख्या आधिक्य, जंगली जानवरों पर हिंसा उपभोग, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण की रक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर समाज को सकारात्मक संदेश व जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण मंच है। इसमें 143 से अधिक देश भाग लेते है। इस वर्ष का थीम 1972 की ही भांति “Only One Earth” है अर्थात केवल एक पृथ्वी है। पृथ्वी को बचा लेगें तो हम स्वयं को बचा लेगें।
प्रकृति के साथ सदभाव पूर्वक स्थायी रूप से सामंजस्य सृजन पर्यावरण बचाने का उपाय है वृक्षारोपण पर्यावरण सुरक्षा का प्रमुख अस्त्र है। पौधे समारोह पूर्वक बड़ी संख्या में बड़े-बड़े बैनर तले पूरे राजकीय प्रचार प्रसार के साथ करोड़ो खर्च कर रोपित किये जाते है परंतु अगले दिन से ही उपेक्षित हो जाते हैं मेरा अभिमत है कि पौधें भले ही कम संख्या में लगें परंतु जो लगें उनकी देखभाल नवजात शिशु से भी ज्यादा हो। सरकारी जल सिंचन नियमित रूप से नहीं होता है, जानवरों से स नहीं होती है। यदि सभी कर्मचारी कार्यालय से निकलते समय एक बाटल पानी अपने साथ रख और घर के रास्ते के पौधों को सिंचित कर दे तो हरियाली, खुशहाली और जागरूकता परिचय होगा।
पौधे से संजीवनी बूटी, दवाईयां, अन्न, शुद्ध हवा, लकड़ी डाली, फूल फल मिलते हैं। पेड़ से गिरे डाल, टहनी पत्ते चिड़ियों के घोंसले बनाते है, पतझड़ न होता तो ६ गोसले कैसे बनते कारगिल युद्ध में शहीद सैनिक के पास से मिली परची पर लिखा था “मेरी याद में मेरे गांव में एक पेड़ लगा देना, गांव के सारे परिन्दों को बसेरा मिल जायेगा।” नदियों के जल प्रवाह के बीच पत्थर से निकलती ध्वनि कहती कि ये पत्थर न होते तो इतना मधुर संगीत नहीं मिलता और न ही छन-छन कर शुद्ध जल मिलता। नदियों में कचरा, पॉलिथिन, गंदे नालों का जल निर्मलतो को प्रभावित करती है। बचपन से पढ़े हैं कि यह कदम्ब का पेड़ अगर मां होता यमुना तीरे मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे ।
आओ शहर के नीम से ढंग दे के अभियान में 5000 नीम के पौधे रोपने की योजना है। जनजन को संदेश पहुंचायें पर्यावरण बचायें। पौधे की हरियाली हमारी शान है। गांवों में मेड पर पेड़ लगायें, अलग से सिंचाई, सुरक्षा नहीं लगेगी अतिरिक्त जमीन नहीं लगेगी। जड़े मिट्टी का क्षरण नहीं होने देगी, फल फूल से अतिरिक्त आय होगी और प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी। पर्यावरण बचेगा तो देश बढेगा। पेड़ होगा तो मिलेगी छांव वरना जलेगें पांव। उद्योगों के अपशिष्ट प्रदूषण को बढ़ाते है अतः उनका उचित एकत्रीकरण करना होगा। फूलों के तितलियों के रंग पर्यावरण को खुशनुमा बनाते हैं।
समुद्र, नदी, तालाब को प्रदूषण, पॉलिथिन से बचायें। गंगा माँ जीवनदायिनी हैं, गंगा में लाशें न बहायें। नर्मदा जी दर्शनीय है। पर्वत, पहाड़, टीले को व्यवसाय के लिए न तोड़े, रेत का व्यवसायिक उत्खनन न करें। नदी किनारे वृक्षारोपण करें। नर्मदा के कंकड़ कंकड़ शंकर कहलाते है। जल ही जीवन है, बचाओगें जल तो बचेगा कल, पानी की बरबादी जीवन की बरबादी है। भारत दौरे पर आये विदेशी क्रिकेटर वापसी में अपनी मां के आदेश पर गंगा जल लेकर गये थे।
समुद्र के खारा जल को रासायनिक प्रक्रिया से पेयजल बनायें। राह चलते हम पॉलिथिन की थैली उठाकर डस्टबिन में डाल दें, सारा शहर थोड़े दिनों में प्रदूषण मुक्त हो जायेगा। कचरा, पराली न जलायें इसमें वायु प्रदूषण बढ़ता है। गाड़ियों के कानफोडू हार्न, लाउड स की कर्कश आवाज ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाता है। वायु प्रदूषण से कोरोन महामारी व छुआछूत से प्रभावित की संख्या सर्वविदित है।
पशु पक्षी की भूमिका भी पर्यावरण संतुलन में अहम है। गिलहरी पेड़ों से बीज एकत्र कर भूमि में छिपा कर भूल जाती है और वही बीच वृक्ष बन जाता है। मोर का मनभावन नृत्य, कोयल की समधुर आवाज तोते का रामराम पर्यावरण को खुशनुमा बनाते है। रूद्राक्ष फल, चंदन की लकड़ी, आम का पल्लव दैवीय उपयोग में आते है। तेलंगाना देश का एक मात्र राज्य है जहां हर घर में जल प्रदाय हो रहा है। गाय के गोबर लेपन से घर कीटाणुमुक्त हो जाता है।
केदारनाथ पर आई आपदा पर्यावरण व प्रकृति संतुलन का ज्वलंत उदाहरण है। श्री राजेन्द्र सिंह पर्यावरण विद को
संरक्षण पर रमन मेगासेसे पुरस्कार मिला है। स्वच्छ भारत मिशन पर्यावरण बचाने का बड़ा अभियान है।
हमें फूलों से नित हंसना सीखना, भौंरों से गुनगुनाना सीखना है, जीवन के दो पहलु हैं हरियाली और रास्ता, हरियाली है तो खुशहाली है। अच्छा सोचो, बनो, सब अच्छा होगा।
भगवान श्री चित्रगुप्त लेखन कला मंच संयोजन मण्डल
विशेष सूचना : श्री चित्रगुप्त लेखन कला मंच संयोजन श्री चित्रगुप्त शोध चिंतन एवं मंत्र लेखन संस्था भारत प्रेषित की गई
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सादर प्रणाम, जय चित्रांश
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