भगवान श्री चित्रगुप्त लेखन कला मंच द्वारा जून 2022 मे आमंत्रित लेख शीर्षक दहेज नारी शक्ति का अपमान मे प्रेषित लेख इस प्रकार हैं । यदि कोई भी लेख कही से copy किया गया होगा तो उसके लिए लेखक स्वयं जवाबदार हैं ।
लेखन कला मंच जून 2022 मे प्राप्त लेख
- चित्रांश सहेंद्र श्रीवास्तव जबलपुर (म. प्र.)
- चित्रांशी अंजली श्रीवास्तव महमूदाबाद जिला सीतापुर (उ.प्र.)
- चित्रांश शैलेष श्रीवास्तव मन्दसौर (म. प्र.)
- श्रीमती अनुराधा सांडले खंडवा (म. प्र.)
- श्रीमती दीपिका पोद्दार इंदौर (म. प्र.)
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चित्रांश सहेंद्र श्रीवास्तव जबलपुर
समाज में फैली दहेज रूपी दानव नारी शक्ति के लिये अपमान है समाज मे फैली दहेज रूपी कुरीतिया दिनों दिन फलीभूत हो रही है इसके लिए दोषी हम सभी है दहेज रहित शादियो के आर्दश निःशुल्क विवाह को बढावा देने की निःशुल्क विवाह सम्मेलन ज्यादा आयोजित किये जाये साथ ही दहेज लेने वाले शादियो का हमे सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए समाज मे दहेज रहित शादियो पर अ॓कुश लगाने के लिये श्री चित्रगुप्त भगवान जी की प्रेरणा से आप सभी के आर्शीवाद से निःशुल्क दहेज रहित विवाह सम्मेलन का फरवरी 2004 से प्रतिवर्ष आयोजित हो रहा है अभी तक 64 विवाह सम्पन्न हुये है हमे समाज में दहेज रहित शादियो के लिए अभियान पर ब्यापक रूप से प्रचार प्रसार हो दहेज रहित विवाह करने वालो को सम्मानित किये जाने से भी समाज मे नारी शक्ति के अपमान निरन्तर सुधार परिल़क्षित होगा आदरणीया मातृ शक्ति से भी बिनम्र अनुरोध है कि दहेज रूपी दानव के विरोध के लिए आप सभी के सहयोग से ही सम्भववः निश्चय ही सुधार होगा।
चित्रांशी अंजली श्रीवास्तव महमूदाबाद जिला सीतापुर (उ.प्र.)
हमारे वैदिक ग्रंथों में कहां गया है की यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का निवास होता है परंतु आज बढ़ते भौतिकतावाद में नारियों की पूजा तो दूर ईश्वर की पूजा को भी बहुत कम कर दिया है। हर कोई बस इच्छाओं की पूर्ति और मृगतृष्णा में इतना उलझा हुआ है कि उसे नैतिक और अनैतिक सोचने समझने की फुर्सत ही नहीं है। वह तो बस अपनी महत्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अपने अनुसार सही या गलत कर्म किए जा रहा है।
शादियों में लिया जाने वाला दहेज भी लोगों की अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति करने का एक माध्यम है।
आज कहता तो हर कोई है कि दहेज लेना और देना पाप है लेकिन जब बारी अपने बेटे की आती है तो उस टाइम यह भूल जाते हैं ।हर मां बाप अपनी बेटी के लिए भी अच्छे से अच्छा रिश्ता ढूंढते हैं और सब कुछ देने को तैयार रहते हैं। आजकल जो जितना संपन्न है, वह उतना ही ज्यादा माँग करता है । अगर कोई सरकारी नौकरी में है तो उसकी मांग और ज्यादा रहती है। मुझे एक बात समझ नहीं आती की आखिर लोग इतने पैसों का करेंगे क्या? क्योंकि मान लीजिए कोई 20 लाख कमा रहा है, उसके बाद भी वह ₹50 लाख दहेज मांग रहा है। जब आप इतना कमा रहे हो कि आप अपने घर खर्च खुद वहन कर सकते हो तो आपको किसी बेटी के बाप से 20 लाख, 30 लाख या 50 लाख लेने की जरूरत क्या है।
आजकल दहेज का एक नया रूप देखने को मिलता है कि हमारा लड़का अगर सरकारी नौकरी में क्लर्क के पद पर भी है तो बहू भी हमारे सरकारी नौकरी वाली ही चाहिए। अगर हमारा बेटा किसी ऑफिसर रैंक पर हैं तो बहू भी हमें सरकारी अधिकारी वाली ही चाहिए। मेरा बेटा मल्टीनैशनल कंपनी में काम कर रहा है तो बहू भी कंपनी में जॉब करने वाली चाहिए। ऐसा क्यों? अगर आपको देखना ही है तो एक अच्छा इंसान देखिए,अच्छे संस्कार, गुण वाली लड़की देखो जो आपकी और परिवार को लेकर चल सके,सबकी इज़्ज़त करे। जो आपके बेटे की,आपके परिवार की वैल्यू कर सकें, पैसा तो सेकेंडरी है। अगर आपकी जरूरतें पूरी हो सके इतना पैसा है तो फिर केवल पैसा ही देखने की क्या जरूरत है?
आप ऐसा देखे कि कौन हमारे परिवार और हमारे संस्कार हमारी संस्कृति को लेकर साथ चल सकता है। कहते हैं स्त्रियां लक्ष्मी होती हैं, अन्नपूर्णा होती हैं,और सरस्वती भी होती हैं।परिवार पर कोई मुसीबत आये तो काली भी बन जाती हैं। सभी देवियां जिसके अंदर मौजूद हैं ,उसे सरकारी नौकरी की मांग कर या दहेज में 20 लाख 50 लाख रुपए मांग कर आप सभी देवियों का अपमान कर रहे हैं।
आजकल विवाह विच्छेद भी बहुत ज्यादा हो गए हैं उसका एक कारण यह भी है की हर कोई बस भौतिक गुणों के पीछे भाग रहा है।कोई कमाता कितना है? किसी का रंग रूप कैसा है? कोई कितना अच्छा दिखता है? यह नहीं देखते कि किसका दिल कितना अच्छा है? किसका व्यवहार ,संस्कार कितने अच्छे हैं? हम बस लड़कियों में दो ही चीज देखते हैं कि वह नौकरी कौन सी कर रही है? और उसका रंग रूप कैसा है?
लेकिन एक बात सभी को ध्यान रखना चाहिए कि आपका रंग रूप ,बाहरी सुन्दरता यह सब बस कुछ समय के मेहमान है कुछ समय बाद आपका रंग आपका रूप सब नष्ट हो जाएगा बस रह जाएगा तो आपके संस्कार, आप के गुण आपका व्यवहार । अगर आप किसी से जुड़ते हैं तो अपने रंग रूप की वजह से नहीं बल्कि अपने अच्छे व्यवहार के वजह से लेकिन दुर्भाग्य की बात तो यह है आजकल शादियों में संस्कार और व्यवहार तो कोई देखना ही नहीं चाहता है बस लोग बाहरी आकर्षण देखकर शादी कर लेते हैं और नतीजन यदि एक दूसरे को नहीं समझ पाए संस्कार, व्यवहार अच्छा नहीं हुआ तो फिर अलग होने की नौबत आ जाती है। मैंने बहुत सी शादियां देखी जो केवल दो चार महीने पर ही टूट गई है।
इसलिए मुझे लगता है कि शादी के लिए दहेज के रूप में अगर कुछ मांग करनी भी हो तो आप लड़की के गुण ,संस्कार और अच्छे व्यवहार की मांग करो। जिस दिन यह मांग शुरू हो जाएगी उस दिन समाज और परिवार की स्थितियां सुधर जाएंगी और एक बेहतर समाज बनेगा और भावी पीढ़ी एक स्वस्थ और सुंदर समाज की नीव रखेगी। मैं यह नहीं कहती हूँ कि सुन्दरता देख कर या सरकारी ल़डकियों से शादी नहीं करना चाहिए लेकिन केवल यही दो चीजें देखना किसी भी लिहाज से नया रिश्ता बनाने के लिए उचित नहीं है क्योंकि यह दो जिंदगी भर के लिए जुड़ने वाला रिश्ता होता है इसमें केवल दो लोग ही नहीं दो परिवार जुड़ते हैं इसलिए एक स्वस्थ और सुंदर रिश्ता बनाने के लिए दहेज,पैसा और शर्तें किनारे रखकर गुण, संस्कार और व्यवहार देखिए, स्त्रियों की इज़्ज़त कीजिए उन्हें वो सम्मान दिजिए जिसकी वो हकदार हैं।।
चित्रांश शैलेष श्रीवास्तव मन्दसौर
“दहेज की मारी, अभिशप्त नारी”
बिटिया को ब्याह में दिए जानेवाले उपहारों पर मेरे विचार शेयर करता हूँ। हाँ लोग इसे दहेज भी कहते हैं। निश्चित ही मेरी तरह आपको भी यह शब्द कहीं अन्तःस्थल में चुभता ही होगा।मजबूरी वश दिया दहेज निश्चित नारी शक्ति का अपमान है।मैं इस पर विचार रखूंगा कि,कैसे इस दहेज का शुद्धिकरण हो और इसे स्नेह युक्त ‘वैवाहिक उपहार’ के नाम से जाना और माना जाए।
नारी शक्ति का भान एक नवजात को उसी वक्त हो जाता होगा,जब उसकी मां उसे जन्म देती है। पर यह पुरुष प्रधान समाज बचपन से ही लड़का-लड़की में भिन्नता रख लड़के को ही ज्यादा महत्व देता आ रहा था। अब जाकर थोड़ी स्थिति बदल रही है।परिवारों में लगातार कम होती जा रही लड़कियों के कारण लड़कियों की संख्या कम होती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण नारी शक्ति का निरंतर अपमान है। परिणाम स्वरूप दहेज प्रथा भी एक मानसिक प्रताड़ना है नारी शक्ति को।
पुराने जमाने मे कन्या की आवश्यकतानुसार कुछ उपहार दिए जाते थे और दामादजी को स्नेह बंधन में बांधने हेतु नेग/नजराने के स्वरूप उपहार दिए जाते थे, जो दहेज का कुरूप बनते गए और इसमें वर पक्ष की अनुचित माँग जुड़ने लगी और विकृत हो यह दहेज अब दानव बनने लगा। इसकी काली सूरत से सब परिचित हैं।
घर में बिटिया के जन्मते ही माता- पिता उसकी शादी तक सोच जाते हैं , और कुछ कन्या निधि हर माह जमा करने लगते हैं। यहाँ तक तो बहुत बढ़िया किन्तु इस कन्या निधि को किस तरह उपयोग में लिया जाएगा इस पर कुछ खास सोच नहीं बन पाती। कभी कभी तो आवश्यक खर्च आन पड़े तो खर्च भी हो जाती है।
प्रसंगवश उन वैवाहिक उपहार के बारे में बात करते हैं ,जो धन राशि से नहीं बल्कि आपके स्नेह, सुरक्षा और बिटिया के सुखद भविष्य से सम्बंधित है।
- 1.सबसे पहले तो बड़ी होती बिटिया के स्वास्थ्य और ग्रोथ पर ध्यान रखिये।
- 2.बेटी को हर सम्भव सुसंस्कार दीजिए।
- 3.बिटिया को स्नेहपूर्वक हर रिश्ते का मर्म और गहराई बताइये। यह उसके ससुराल में बहुत काम की होगी।
- 4.भाई बहनों का स्नेह उसे ननद देवर से भी स्नेह रखने में मदद करेगा।
- 5.सभी बड़ों के साथ आदर और स्नेह के साथ रहना सिखाइये।
- 6.साथ ही उसकी अच्छी शिक्षा का इंतजाम भी रखें ।
- 7.यदि उसे कोई अतिरिक्त्त रुचि है तो पूरा करने में सहयोग कीजिये।
- 8.बिटिया को आत्मनिर्भर बनाइए हर क्षेत्र में खासतौर पर उसे वाहन चलाना अवश्य सिखाइए।
- 9.अंतिम किन्तु महत्वपूर्ण; छोटे बड़े घरेलू काम की आदत होनी ही चाहिए।
ये सारे अमूल्य उपहार उसे अपनी ससुराल में बहुत ही काम आएंगे। याद रखिये आपकी एक-एक सीख अमूल्य है, जो बाजार में शॉप पर नहीं मिलती है।
- एक विशेष बात यह कि मोबाइल के इस युग मे बिटिया के ससुराल सम्बन्धी निर्णयों और शिकायतों में दखलंदाजी से दूर रहिए, इससे उसका जीवन सुखमय बनेगा.आज की समस्याओं में यह अमूल्य उपहार है.
- बिटिया दूसरे घर जाकर आपके परिवार का आईना बनेगी, आपके दिए गये संस्कार उसकी ससुराल में प्रतिम्बिबित होंगे,अच्छे संस्कार आपको मान सम्मान भी देंगे।
- बिटिया को गऊ भी न बनाऐं जो हर अत्याचार और नापसन्द को झेलने पर मज़बूर हो। उसे सही समय पर सही निर्णय और निर्णय पर खुल कर बहस की आजादी दीजिए।
- यह सीख उसे अपने भले बुरे सम्बंधित निर्णय लेने में मददगार होगी।
- आदिकाल में बिटिया को ज्वैलरी गहने आदि इस लिए उपहार दिए जाते थे कि वो आड़े और बुरे वक्त में मददगार हो क्योंकि उस समय बैंकिंग प्रचलन में नहीं थी. इसलिये अब सबसे जरूरी एक बैंक खाता जिसमें ATM औऱ अन्य सुविधा हो जिसमें थोड़ी धनराशि हो उसे दीजिये.
- हमारा एक कदम दहेज प्रथा को नष्ट कर सकता है।दहेज को अनावश्यक डिमांड के रूप में नही आपके शुद्ध स्नेह और बिटिया की आवश्यकता से जोड़कर देखिये।
- पहले की शादियों में हमेशा एक मध्यस्थ होते रहे हैं। कहीं भी बात बिगड़े तो संतुलन बनाकर आगे बढ़ सके. यह जो चीज अब समाप्ति पर है इसको पुनर्जीवित करना जरूरी है।
- याद रहे बिटिया के लिए दहेज नहीं आपके आशीर्वाद दुआओं और संस्कार से लबालब एक टोकनी आपकी ओर से सच्चा उपहार है.
कोशिश करिए कि ससुराल में भी बिटिया को बिटिया सा प्यार मिले….!!!
ये छोटे छोटे स्टेप्स प्रथा बन जाये तो दहेज दानव अवश्य समाप्त होगा,और दहेज से अभिशप्त नारी खुल कर सांस ले सकेगी।
बस यही अपनी बात को विराम देता हूँ।
श्रीमती अनुराधा सांडले खंडवा
बेटियों काे जाे सतायेगां!!
नरक में वाे जायेगा!
कितने नाजाै से पलती है बेटियाँ!!
वह घर है स्वर्ग के समान!!
महान!!
जहाँ पूंजी जाती है बेटियाँ!!
काेई दरिंदा अपनी ताकत समझ कुचल देता है बेटियाँ!!!
किसी की मां किसी की बेटी होती है बेटियाँ ***
बर्बरता का ताडंव लूटी जाती हैं बेटियाँ **
किसी काेने में सिसकती है बेटियाँ घर की लाज हाेती है बेटियाँ!!
फिर क्यों इनकाे दहेज दानव जला देती हैं बेटियाँ!!!
अपनी किस्मत का खाती है बेटियाँ **
अपना घर छोड़कर पराया घर अपनाती है बेटियाँ *
फिर क्यों मजबूर होती है बेटियां फिर क्यों मजबूर होती है बेटियाँ **
श्रीमती दीपिका पोद्दार इंदौर (म. प्र.)
हमारा इतिहास साक्षी है कि भारतीयों ने नारी जाति को हमेशा सामाजिक प्रतिष्ठा एवं सर्वोच्च स्थान प्रदान किया है। प्रकृति स्वरूपा नारी को परमेश्वर की शक्ति के रूप में स्थान दिया गया है। कोई भी धार्मिक अनुष्ठान स्त्री के बिना पूरा नहीं होता था। गार्गी , मैत्रियी , अनुसूया आदि उस युग की अत्यंत महान नारियाँ थी। स्त्रियाँ गृह प्रबंध ही नहीं , राज्य प्रबंध और कभी कभी युद्ध क्षेत्र में भी पुरुषो का साथ देती थी। कुंती , कैकयी , शंकुतला , रुकमणी आदि के नाम विभिन्न संदर्भो में उल्लेखनीय है।
समय के साथ परिस्थितिया भी बदली तथा सामाजिक परिवेश भी बदलते गए। आचार-विचार में परिवर्तन होते रहे। देश में अनेक सामाजिक , धार्मिक तथा राजनीतिक क्रांतियाँ हुई। प्राचीन मूल्यों के ढांचे लड़खड़ा गए तथा नए नए मूल्यों का उद्भव हुआ। मध्य युग आते आते स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में बहुत परिवर्तन आता गया। जैसे – पूर्वकाल में भेंट-प्रथा थी , वही आज दहेज़ प्रथा बन गयी। विवाह करना एक कमाई का जरिया बन गया। वधू पक्ष से दहेज़ में धन की मांग कर सम्पूर्ण नारी जाति का अपमान किया जाता है।
इस कुप्रथा ने हमारे समाज को कलंकित किया है। दहेज़ का रूप इतना विकृत हो गया है कि इसने व्यापार का रूप ले लिया है। यदि पिता के पास धन का अभाव है तो पुत्री का विवाह योग्य वर से होना मुश्किल है क्योंकि उसके द्वारा मुंहमांगी कीमत उसके पिता के पास नहीं। ऐसा लगता है कुँआरी कन्या वस्तु और लड़के का पिता सौदागर।
वर्तमान समय में तो हर प्रकार के लड़के का दहेज़ निश्चित है , ठीक उसी प्रकार जिस तरह राशन की दुकान में सामान का मूल्य निर्धारित रहता है। अब विवाह में कन्याओ के गुण नहीं , बल्कि उसके पिता के द्वारा दिया जाने वाला दान-दहेज़ देखा जाता है। आज माँ – बाप बच्चो का पेट काटकर पैसे बचाते है। यहाँ तक कि रिश्वत , गबन जैसे अनैतिक कार्य करने से भी नहीं चूकते। दूसरी ओर बहुओं को दहेज़ के लालच में परेशान किया जाता है। दहेज़ के लिए कई बार बहू को मारा -पीटा जाता है। और यदि शारीरिक कष्ट और मानसिक पीड़ा देने पर भी यदि वह दहेज़ की मांग पूरी न कर सकी , तो कई बार ससुराल वाले उसे मौत भी दे देते है।
इस विकराल समस्या का यही समाधान हो सकता है कि इस के लिए तरुणाई आगे आये। युवा न तो दहेज़ ले और न ही दहेज़ दे। जब देश का युवा वर्ग ही इस लेनदेन का कठोरता से विरोध करेगा तो इस बुराई पर अंकुश लग सकता है।
साथ ही सामाजिक स्तर पर इसके विरोध में जागृति अभियान चलाया जाये। इस अभियान के कार्यकर्त्ता अगर इसके भुक्तभोगी लोग होंगे तो यह प्रथा शीघ्र समाप्त हो सकती है। एवं दोषी व्यक्ति को कानून के सुपुर्द कर देना चाहिए। उस पर दंडात्मक कार्यवाही से निश्चित ही सामाजिक जागृति आएगी और निकट भविष्य में यह प्रथा समाप्त हो जाएगी।
भगवान श्री चित्रगुप्त लेखन कला मंच संयोजन मण्डल
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