भगवान श्री चित्रगुप्त लेखन कला मंच द्वारा सितंबर 2022 मे आमंत्रित लेख शीर्षकभारत की आजादी में कायस्थों का योगदान मे प्रेषित लेख इस प्रकार हैं । यदि कोई भी लेख कही से Copy किया गया होगा तो उसके लिए लेखक स्वयं जवाबदार हैं ।
लेखन कला मंच सितंबर 2022 मे प्राप्त लेख
- 1. चित्रांशी अर्चना श्रीवास्तव रीवा (म.प्र.)
- 2. चित्रांश सहेंद्र श्रीवास्तव जबलपुर (म.प्र.)
- 3. श्रीमती अनुराधा सांडले खंडवा (म.प्र.)
- 4. हेमन्त सक्सेना शाजापुर (म.प्र.)
- 5. चित्रांशी अंजली श्रीवास्तव जिला सीतापुर (उ.प्र.)
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- चित्रांश नरेंद्र श्रीवास्तव नीमच 9425975525
- चित्रांश मनीष निगम इंदौर 9827059128
- चित्रांश डॉक्टर गोविंद नारायण श्रीवास्तव रीवा 9407061724
1. चित्रांशी अर्चना श्रीवास्तव रीवा (म.प्र)
सवर्ण हिंदू समुदाय का प्रबुद्ध समाज जो पुरातनकाल से देश हित कार्यों में संलग्न हैं। समाज के विभिन्न पदों पर सुशोभित रहा हैं। आजादी के समय हमारा देश सोने की चिड़िया के नाम से जाना जाता था। आजादी के रणक्षेत्र में कोई जातिगत भेद नहीं था, सभी का एक लक्ष्य था, फिरंगियों को देश से भगाना और स्वतंत्र भारत के उन्मुक्त गगन में स्वतंत्र विचारों के साथ उड़ान भरना।
ये संभव होना बहुत मुश्किल था फिर भी हमारे वीर पुरुषों, महिलाओं, बच्चों सभी ने सर्वस्व समर्पण किया और भारत देश को आज़ादी दिलाई। इस भीषण युद्ध में हमारे कायस्थों का भी बहुमूल्य योगदान रहा। भारत की आज़ादी की बड़ी संघर्षशील व्यथा! ब्रिटिश शासकों के अत्याचार जो आर्थिक, मानसिक और शारीरिक रुप से बहुत कष्टप्रद होते, पर भारतीय कहां हार मानने वाले थे, उस पर कायस्थ समाज….
- यदि हम बात करते हैं स्वतंत्रता में योगदान की तो महर्षि अरबिंदो जी जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई के साथ साथ अध्यात्म का प्रचार प्रसार किया।
- स्वामी विवेकानंद जी युवाओं के प्रेरणास्रोत, मार्गदर्शक, आध्यात्मिक प्रतिभा से भरपूर जिन्होंने युवाओं को लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक अलक जगाई और कहा उठो, बढ़ो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य न हासिल हो।
- महर्षि महेश योगी, परमहंस योगानंद ने मानवता को जागृत किया।
- खुदीराम बोस बहुत कम उम्र में देश की आज़ादी के रण में शामिल हो गए। छोटी सी उम्र में ही हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए।
- “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” जैसे वक्तव्य के साथ सुभाष चंद्र बोस भारतीयों में जोश भरते नहीं थकते।
- इन्हीं के साथ देश के लिए समर्पित राम बिहारी बोस और विपिन चंद्र पाल को भी भुलाया नहीं जा सकता।
- डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने।
- गुदड़ी के लाल कहलाने वाले लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान के उद्घोष के साथ स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और देश के उच्च पदों को सुषोभित किया।
- बात करें जय प्रकाश नारायण जी की जनसेवा में सतत कार्यरत रहते। उन्हें लोकनायक की उपाधि से नवाजा गया।
सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में राजा राममोहन राय का अमूल्य योगदान रहा।
आज ऐसे ही महान विभूतियों के समर्पन के बाद ही हम स्वच्छंद विचरण कर पा रहे हैं। इन सबका समर्पण बहुमूल्य है। इनके त्याग को कोटि कोटि नमन।
2. चित्रांश सहेन्द्र श्रीवास्तव जबलपुर (म.प्र)
आजादी के पूर्व से कायस्थ समाज एक प्रबुद्ध समाज के नाम से जाना जाता रहा है आजादी मे कायस्थ समाज के सम्मानीय नेताओं का अग्रिम पंक्ति मे लिया जाता है नेताजी सुभाष चंद्र बोस डा राजेन्द्र प्रसाद जी जो कि आजादी के बाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति रहे खुदीराम बोस स्वामी विवेकानंद जैसे महान नेता और भी नाम है स्वतंत्रता संग्राम सेनानियो की देश के लिये आजादी के लिये अपनी कुर्बानी दी आज हम कायस्थ समाज को आजादी मे समर्पित महान नेताओ पर गर्व है कायस्थ समाज को सामाजिक विज्ञान साहित्यिक क्षे़त्र सभी विधाओ मे कायस्थों ने अपनी कुर्बानी से देश को आजादी मे अनुकर्णीय समर्पित रही है।
3. श्रीमती अनुराधा सांडले खंडवा (म.प्र.)
चित्रगुप्त वंशी कायस्थ मूलनिवासी भारत में रहने वाली एक उच्च कोटि की जाती है जो मुख्यतः भारत में निवास करती है यह भारत में रहने वाले कलम कांडी कायस्थ महा जाति का एक हिस्सा है
कायस्थ समाज की आदरणीय श्री आर के सिन्हा जी के बारे में मैंने जो पढ़ा वह कायस्थ समाज में जन्मे थे बिहार के के बक्सर मैं जन्में रविंद्र किशोर सिन्हा ने 22 साल की उम्र में पटना पटना में में गैरेज लिक पर लेकर सिर्फ ढाई सौ रुपए में एक कंपनी शुरू की थी आज यह कंपनी एसआईएस के नाम से जानी जाती है कायस्थ समाज के सबसे बड़े अभिनेता अतुल श्रीवास्तव जी ने भी समाज को को गौरवान्वित किया है फिल्म जगत में फिल्म जगत में कई भाई व बहनाें ने इस समाज काे काव्य जगत से महकाया है
4. हेमन्त सक्सेना शाजापुर (म.प्र.)
भारत देश की आजादी में कायस्थ समाज के वीर सिपाई आजाद हिन्द फौज के वीर सपूत सुभाष चन्द्र बोस की अहम भूमिका रही है आजादी के बाद सुभाष चन्द्र बोस को भारत देश का प्रथम प्रधान मंत्री मनोनीत किया गया था और कुछ देशों ने तो इनको स्वीकार ( मान्यता)भी प्रदान कर दी थी नेहरू जी तो चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बने थे
5. चित्रांशी अंजली श्रीवास्तव जिला सीतापुर (उ.प्र.)
भारत अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है। यूं तो हम सभी जानते हैं कि हमारे देश को आजादी दिलाने में लाखों लोगों ने अपने जीवन का त्याग किया है। मातृभूमि की बलिवेदी पर खुद को न्यौछावर किया है। जिनमें कुछ से हम परिचित हैं और एक बड़ी संख्या उन बलिदानियों की है, जिनका नाम भी इतिहास के पन्नों से विलुप्त है।
निःसंदेह भारत की आज़ादी में सभी वर्गों, समूहों,जातियों, जनजातियों, आदिवासियों और सभी धर्म के लोगों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया है और इनमें कायस्थ समाज के लोगों की भी बड़ी भूमिका रही है।
कायस्थ समाज का भारत को आजाद कराने में ही नहीं बल्कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के पथ प्रदर्शन में लगभग हर क्षेत्र में कायस्थों का बहुत ही महत्वपूर्ण और अतुलनीय योगदान रहा है। जब बात कायस्थों की हो रही हो तो हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ राजेंद्र प्रसाद, खुदी राम बोस को विस्मृत नहीं कर सकते।
खुदी राम ने 18 साल की उम्र में ही फांसी का फंदा चूम अपने जीवन की आजादी के हवन कुंड में आहुति दे डाली। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने देश को आजादी दिलाने का बीड़ा उठाया और लगभग उन्होंने स्वतंत्रता का उद्घोष कर भी दिया था परंतु कुछ कुटिल राजनीतिक लोगों के षड्यंत्रों का शिकार हो गए। एक अकेला सुभाष बाबू ही गोरों की जड़े उखाड़ फेंकने के लिए काफी था। कुशल नेतृत्व क्षमता और लोगों के अंदर ओज का संचार करने वाले व्यक्तित्व को भी आज लोगों ने भुला दिया । उनके योगदान और उनके कार्यों को दबा दिया। लाल बहादुर शास्त्री के विषय में तो सभी जानते हैं। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपने मजबूत और निडर व्यक्तित्व का परिचय दिया। देश की आजादी में भी गांधीजी के साथ मिलकर सत्याग्रह में योगदान दिया। जिस शास्त्री व्रत की बात आज भी हम करते हैं। देश में भुखमरी की समस्या के समय अमेरीका जैसे बड़े देश से अनाज ना लेने और किसानों का हौसला बढ़ाने के लिए शास्त्री व्रत की शुरूआत स्वयं लाल बहादुर शास्त्री ने की थी। उन्होंने देशवासियों से इस व्रत को करने के लिए आग्रह भी तभी किया जब स्वयं एक सप्ताह रहकर देख लिया।
आज भी और इतिहास में भी ऐसे बहुत से कायस्थ हुए हैं जिन्होंने युग परिवर्तन किए हैं, जिनके कार्यों ने समाज को नव पथ दिखलाया है। परतुं दुःखद यह है कि औपनिवेशिक मानसिकता के इतिहासकारों और राजनेताओं ने समाज के केवल कायस्थों ही नहीं अन्य अतुलनीय योगदान देने वाले व्यक्तियों के नामोनिशान को मिटाने की हर संभव कोशिश की है। हमे चाहिए कि हम उन लोगों के योगदान, बलिदान,त्याग को समाज में उजागर करें जिससे समाज को भी वास्तविकता का ग्यान हो सके।
भगवान श्री चित्रगुप्त लेखन कला मंच संयोजन मण्डल
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