भगवान श्री चित्रगुप्त जी स्तुति

श्री चित्रगुप्त दयालू भजमन, पाप मोचन दारूणम् ।
श्याम लोचन श्याम मुखकर, श्याम पद कंजारूणम् ।।1।।

आजानभुज करवाल पुस्तक, करकलम मसिभाजनम् ।
पट धवल मानहु रजत पट पर, नागदेव सुतौवरम् ।।2।।

सिरमुकुट कनकुण्डल वसन, विराज न्यायसिंहासनम् ।
भज चित्रगुप्त उदार मन तन, पाप पाश निकन्दनम् ।।3।।

बुद्धि विवेक ज्ञान मति अरू, लेख अक्षर दायकम् ।
विद्या विनय च पात्रता च, पाप पुण्य फलदायकम् ।।4।।

इति वदति कुलदीप नारायण, विधि महेश्वर रंजनम् ।
ममह्रदय सद्यनिवास कुरू, ज्ञान ध्या‍न परिभार्जनम् ।।5।।

।।प्रेम से बोलिए श्री चित्रगुप्त भगवान की जय।।


जय जय चित्रगुप्त भगवान, तुम हो ज्ञाननिधि गुणखान ।।

धर्मराज ने विनती की, जब ब्रह्मा जी से आन ।
कौन करेगा गणित सृष्टि का, और कर्म अनुमान ।।
विचार मग्न हो ब्रह्मा जी ने, किया इंश का ध्यान ।
प्रगटे चित्त श्री ब्रह्मा जी से, हों उनके अनुध्यान ।। जय० ।। 1 ।।

ब्रह्मा विष्णु महेश मुरारी, सब के हो त्रिशुल ।
सृष्टि के सब कर्मकाण्ड का, न्याय आपका मूल ।।
शुभ कर्मों के फलादेश में, आदि से अनुकूल।
तुम्हें नमामी वंशज स्वामी, तुम हो शक्ति महान ।। जय० ।। 2 ।।

माथुर भटनागर, आष्ठाना, सक्सेना, कुल श्रेष्ठ ।
कर्ण, निगम, गौड़, सूरध्वज और श्री आमिष्ठ ।।
वाल्मीक और श्रीवास्तव, बारह पुत्र बलिष्ठ ।
सब के जिम्मे किया जगत में कार्यलेख विज्ञान ।। जय० ।। 3 ।।

आज दशा वंशज की अपने शोचनीय भगवान्।
अवनत गत को पहूँच चला, सब गया मान अभिमान ।।
पुनरूत्थन करो अब स्वामी, दूर करो अज्ञान।
बार बार प्रभु विनय चन्द्र की, रखो हमारा मान ।। जय० ।। 4 ।।


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