श्लोक-
मंगलम् चित्रगुप्तो मंगलम् स्वकायतम्।
कायस्थ धर्मोस्तुते मंगलम् फलदायकम् ।
ओमकायम् अकायम् कालम् अकालम् ।
आदिम् अनादिम् महाकाल कालम् ।।1।।
स्वाविभूर्तम् जन्मस्य रहितम् ।
कायस्थूलम् धर्माधिराजम् ।।2।।
शिव ओम् सूत्रम् शाखम् विधातम् ।
शक्तिम् तनूजम् पराकृत कृपालम् ।।3।।
महाकाल पुस्तम् लेखनी सुकालम् ।
मसि शारदाम् त्रय हस्ते शोभायम् ।।4।।
चतुर्थम् दण्डम् दण्ड: विधानम् ।
सठ्यम् साठ्यम् समा चरेतम् ।।5।।
लिखितम् पठितम् वर्णम् प्रदातम् ।
सुमतिम् प्रयज्ञम् ज्ञानम् प्रकाशम् ।।6।।
पापम् पुण्यष्च फल म् नियंत म् ।
छणम् छणम् कृत लिखतम् रचितम् ।।7।।
बुद्धिम् मर्जनम् विधिम् विवेकम् ।
दातार केवल चित्रस्य गुप्तम् ।।8।।
चित्रगुप्ताष्टकम् प्रोक्तम् तोषये।
येपठन्ति नराकायस्थ तेषांचित्रप्रसीदति।
।।प्रेम से बोलिए श्री चित्रगुप्त भगवान की जय।।
चित्रगुप्त जी चित्रगुप्ताष्टक श्री सचिन जी श्रीवास्तव सतना के माध्यम से प्राप्त हुआ, उनका बहुत बहुत आभार