भगवान श्री चित्रगुप्त जी चालीसा

दोहा-
सुमिर चित्रगुप्त ईश को, सतत नवाऊं शीश। ब्रम्हा विष्णु महेश सह, रिनिहा भए जगदीश।।
करो कृपा करिवर वदन, जो सरस्वती सहाय। चित्रगुप्त जस विमलयश, वंदन गुरुपद लाय।।

चोपाई-
जय चित्रगुप्त ज्ञान रत्नाकर । जय यमेश दिगंत उजागर ।।1।।
आज सहाय अवतरेउ गुसांई । कीन्हेउ काज ब्रम्ह कीनाई ।।2।।

अज की रचना मानव सुंदर । मानव मति अज होई निरूत्तर ।।3।।
भए प्रकट चित्रगुप्त सहाई । धर्मा धर्म गुण ज्ञान कराई ।।4।।

राचेउ धरम धरम जग‌ मांही। धर्म अवतार लेत तुम पांही ।।5।।
अहम विवेकइ तुमहि विधाता । निज सत्ता पा करहिं कुघाता ।।6।।

श्रृष्टि संतुलन के तुम स्वामी । त्रय देवन कर शक्ति समानी ।।7।।
पाप मृत्यु जग में तुम लाए । भय का भूत सकल जग छाए ।।8।।

महाकाल के तुम हो साक्षी । ब्रम्हउ मरन न जान मीनाक्षी ।।9।।
धर्म कृष्ण तुम जग उपजायो । कर्म क्षेत्र गुण ज्ञान करायो ।।10।।

राम धर्म हित जग पगु धारे । मानव गुण सद्गुण अति प्यारे ।।11।।
विष्णु चक्र पर तुम्हीं विराजे । पालन धर्म करम शुचि साजे ।।12।।

महादेव के तुम त्रय लोचन । प्रेरक शिव अस तांडव नर्तन ।।13।।
सावित्री पर कृपा निराली । विद्यानिधि मां सब जग आली ।।14।।

रमा भाल पर कर अति दाया । श्रीनिधि अगम अकूत अगाया ।।15।।
उमा विच शक्ति शुचि राच्यो । जाके बिन शिव शव जग बाच्यो ।।16।।

गुरु बृहस्पति सुर पति नाथा । जाके कर्म गहइ तव हाथा ।।17।।
रावण कंस सकल मतवारे । तव प्रताप सब सरग सिधारे ।।18।।

प्रथम पूज्य गणपति महदेवा । सोऊ करत तुम्हारी सेवा ।।19।।
रिद्धी सिद्धी पाय द्व‌ैनारी । विघ्नहरण शुभ काज संवारी ।।20।।

व्यास रचहि जब वेद पुराना । गणपति लिपिबद्ध हितमन ठाना ।।21।।
पोथी मसि शुचि लेखली दीन्हा । अवसर देय जगत कृत कीन्हा ।।22।।

लेखनी मसि सद कागद कोरा । तव प्रताप अजु जगत मझोरा ।।23।।
विद्या विनय पराक्रम भारी । तुम आधार जगत आभारी ।।24।।

राम कृष्ण गुरुवर गृह जाई । प्रथम गुरु महिमा गुण गाई ।।25।।
देववृत जप तप व्रत कीन्हा । इच्छा मृत्यु परम वर दीन्हा ।।26।।

धर्म हीन सौदास कुराजा । तप तुम्हार बैकुंठ विराजा ।।27।।
हरि पद दीन्ह धर्म हरि नामा । कायथ परिजन परम पितामा ।।28।।

सूर सुता नंदनी मनोहर । चित्रगुप्त संग ब्याही सुंदर ।।29।।
भानु विभानु विश्वभानु सुहाए । वीर्यभानु चतुरथ सुत पाए ।।30।।

नागसुता एरावती सयानी । अति सुंदर अति गुण खानी ।।31।।
ब्याही दूजी भामिनी सुंदर । अष्ठ पुत्र जिनके अति सुंदर ।।32।।

चारू सुचारू चित्र मतिभाना । चितचारू उरूण अतिंद्र हिमवाना ।।33।।
द्वादस पूत जगत अस लाए । राशी चक्र आधार सुहाए ।।34।।

जस पूता तस राशी रचाना । ज्योतिष के तुम जनक महाना ।।35।।
तिथि लगन होरा दिग्दर्शन । चारि अष्ट चित्रांश सुदर्शन ।।36।।

राशी नखत जो जातक धारे । धर्म कर्म फल तुमहि अधारे ।।37।।
जय जय जय चित्रगुप्त गुसांई । गुरूवर गुरु पद पाय सहांई ।।38।।

जो शत पाठ करइ चालीसा । जन्म मरण दुःख कटइ कलेसा ।।39।।
विनय करैं कुलदीप शुवेशा । राख पिता सम नेह हमेशा ।।40।।

दोहा-
ज्ञान कलम मसि सरस्वती, अंबर है मसिपात्र । कालचक्र की पुस्तिका, सदा रखें दण्डास्त्र ।।
पाप पुण्य लेखा करण, धारयो चित्र स्वरूप । श्रृष्टि संतुलन स्वामी सदा, स्वर्ग नर्क कर भूप ।।

।।इति श्री चित्रगुप्त चालीसा समाप्त‌:।।


आभार – यह चालीसा Social Media से प्राप्त हुई है धन्यवाद् ।

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