भगवान श्री चित्रगुप्त जी कलम-दवात स्‍त्रोत


दोहा-
ज्ञानसूत्र आधवर निधि सकलकला गुणखान ।
वेद ग्रंथ जग ईश सब केवल तुम्ही महान ।।

चौपाई-
चित्रगुप्त कर कलम सुहानें, काल पुस्तकी जिल्द समानें ।
नितनित लेखनी अच्छर नाना, ज्ञान अथाह समुद्र समाना ।।1।।

हेशुचिकलम सुअच्छर नयनी, करति नियत नित मानव करमी ।
ज्ञानही ज्ञान मिल्यो‍ जग सारा, अग्रनोक महि ज्ञान अपारा ।।2,।।

तूविद्या अरू बुद्धि विलासा, तुझमहि चारिउ वेद सुवासा ।
तुमबिन ज्ञान कबहु जगनाही, व्यास आदि मुनि संत सराही ।।3।।

प्रथम् व्यास जब वेद बखाना, गणपति तब कर धर सुख माना ।
तव संग पाय पाणि जग सोहे, विकसित होय ज्ञान मन मोहे ।।4।।

करत सदा मसि संग विहारा, आंचल दामन साथ तुम्हारा ।
हे शुचि कलम प्रताप तुम्हांरे, भांति भांति पुस्तक जग सारे ।।5।।

वेद पुरान ग्रंथ गुरुवानी, कलमहि लिपिबद्ध ‌‌ज्ञान बखानी ।
कलमहि कारक ज्ञान विज्ञाना, केवल तुम ही जगत महाना ।।6।।

धन्य धन्य शक्ति तेरी महिमा अपरंपार। ज्ञान का सागर बहा केवल तुम आधार।।
जगमग जग को कर रहे जले ज्ञान कुलदीप। विद्यामाता सरस्वती साजे सदा समीप।।

।।प्रेम से बोलिए श्री चित्रगुप्त भगवान की जय।।


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